रोपे जाते हैं लाखों पौधे पर नहीं फैलती हरियाली

 


अंबेडकरनगर

शासन की ओर से हर साल पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। लगभग एक माह तक पर्यावरण संरक्षण के नाम पर पौधारोपण कार्यक्रम चलाया जाता है।

साल दर साल वन महोत्सव के नाम पर लाखों पौधे रोपे जाते हैं। बावजूद इसके जिले में न तो वन क्षेत्र में वृद्धि होती है न इनकी हरियाली दिखती है। यह वन क्षेत्र यहां के पौधारोपण अभियान का सच बयां करता है। इस साल भी अमृत महोत्सव के दौरान लाखों पौधे रोपे गए। तमाम विभागों को रोपण की जिम्मेदारी भी सौंप दी गई थी। हर साल यह क्रम दोहराया जाता है पर हरियाली और वृक्षों की संख्या जस की तस रहती है।जिले में वृक्षों की अंधाधुंध कटान और बागों, वनों को खेत और मकान में तब्दील करने की होड़ मची है। अयोध्या_ तथा आजमगढ़ राजमार्ग के चौड़ीकरण में भी हजारों की संख्या में सैकड़ों वर्ष पुराने पेड़ों की कुर्बानी दी गई। हरियाली से वीरान हुए इन स्थलों को हरा-भरा करने के सार्थक प्रयास नहीं किए जा रहे हैं।इस वृहद पौधारोपण के बाद भी विडंबना है कि जिले में वन क्षेत्र का विस्तार नहीं हो सका है।सूत्रों की मानें तो ग्रामीण इलाकों में किसानों, आवास लाभार्थियों सहित अन्य योजनाओं के लाभार्थियों में पौधों का वितरण किया गया, लेकिन सैकड़ों ऐसे लोग मिले जिनके यहां पौधरोपण करने के लिए जमीन ही उपलब्ध नहीं थी। ऐसे में काफी पौधे नष्ट हो गए। गांवों मेें लगाए गए पौधों का रखरखाव मनरेगा के तहत किया जाता है। प्रत्येक ग्राम रोजगार सेवकों को इसके देखरेख की जिम्मेदारी दी गई थी। हालत यह रही कि पौधरोपण के बाद शहरी और ग्रामीण इलाकों में न तो ब्रिक गार्ड लगे और न ही उनकी उचित देखभाल हुई। ऐसे में पौधे छुट्टा पशुओं का निवाला बन गए। जनपद अंबेडकरनगर के सभी विकास खंडों में पिछले वर्ष भी कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा, ग्राम पंचायत और वन विभाग के अधिकारी और जनप्रतिनिधि, तालाब के किनारे खेतों में, अस्पताल परिसर ,विद्यालय परिसर, गोशाला, खेल मैदान, एवं सड़कों के किनारे पौधा लगा कर फोटो खिंचवाकर अमृत महोत्सव मनाया था।इसके बावजूद अंबेडकरनगर की धरती वीरान ही है।जमीनी हकीकत यह है कि प्रति वर्ष उसी स्थान पर फिर पौधारोपण किया जाता है। जीवित और मृत पौधों की जानकारी के लिए डी.एफ.ओ . से दूरभाष पर संपर्क किया गया परंतु फोन नॉट रिचेबल बताता रहा है। जिला कृषि अधिकारी पीयूष राय ने कहा कि पौधों को रोपने से अधिक आवश्यक है कि उन्हें बचाना। रोपित पौध की उत्तरजीविता बेहद जरूरी है। बीते दो-तीन सालों में सरकार इस दिशा में ध्यान दे रही है। जितना पौधारोपण आवश्यक है उतना ही पौधों को संरक्षित करना भी है, तभी स्थितियां बदलेंगी।

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