नारी सम्मान के रक्षक थे भगवान श्रीकृष्ण : डॉ.सुखवीर यादव
नारी सम्मान के रक्षक थे भगवान श्रीकृष्ण : डॉ.सुखवीर यादव
बाराबंकी। भगवान श्रीकृष्ण के विषय में चर्चा करते हुए संस्कृत विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर एवं इंदिरा गांधी ओपन यूनिवर्सिटी के एकेडमिक काउंसलर डॉ. सुखवीर यादव कहते हैं की 18 पुराणों में से कुछ पुराणों को छोड़कर लगभग सभी पुराणों में भगवान श्रीकृष्ण का वर्णन है, विशेष कर श्रीमद्भागवतपुराण में भगवान श्रीकृष्ण का विशेष वर्णन है भगवान श्रीकृष्ण यादव श्रेष्ठ वसुदेव एवं देवकी की आठवीं संतान थे एवं उनका पालन पोषण नंद गोप एवं यशोदा के द्वारा किया गया। भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण के बाल्यावस्था में ही नारी प्रेम एवं सम्मान की झलक देखने को मिल जाती है। श्रीकृष्ण सर्व समर्थ होते हुए भी अपनी माता यशोदा के प्रेम में बंधे हुए उनकी डांट फटकार सब कुछ असहाय बच्चों की तरह सहते हैं एवं अपनी माता को प्रसन्न करने का हर संभव प्रयास करते हैं
वहीं दूसरी और अपनी प्रेमिका राधा जी को प्रसन्न करने के लिए तरह तरह के प्रयास किया करते थे, कभी तो वह उनके सामने कान पकड़कर माफी मांगा करते थे और कभी राधा को प्रसन्न करने के लिए अपनी बांसुरी की मीठी और मधुर धुन सुनाया करते थे कई बार उपवनों में मिलने के पश्चात भी श्री कृष्ण ने कभी भी राधा के गौरव पर आंच नहीं आने दी जोकि नारियों के लिए श्रीकृष्ण के सच्चे प्रेम को दर्शाता है।
16100 लड़कियों के चरित्र की, की थी रक्षा
पौराणिक कथा है कि भूमासुर नामक एक दानव ने अमर होने के लिए 16100 कन्याओं की बलि देने का निश्चय किया था भगवान श्रीकृष्ण ने सत्यभामा की सहायता से इन कन्याओं को भूमासुर अथवा नरकासुर नामक राक्षस के कारावास से मुक्त करा कर उन्हें वापस घर भेज दिया। जब यह कन्याएं अपने अपने घर पहुंची तो घर वालों ने चरित्र के नाम पर इन्हें अपनाने से मना कर दिया, तब इनकी सामाजिक मान प्रतिष्ठा को बचाने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने 16100 अलग अलग रूपों में प्रकट होकर एक साथ उनसे विवाह रचाया था।
16 हजार 108 रनियां 1 लाख 61000 थे पुत्र
पुराणों में उल्लेख है भगवान श्रीकृष्ण की 8 पत्नियां थी, इनके नाम रुक्मिणी, जाम्बवंती, सत्यभामा, कालिंदी, मित्रविंदा, सत्या, भद्रा और लक्ष्मणा थे। इनके अतिरिक्त नरकासुर का वध करके जिन 16100 दासियों को मुक्त कराया था उन दासियों के अनुरोध पर उनसे भी विवाह किया था, इस प्रकार कुल पत्नियों की संख्या 16108 हो जाती है इन सभी पत्नियों से 10 - 10 पुत्र और एक - एक पुत्री का जन्म होता है, इस प्रकार कुल 161000 पुत्रों का जन्म होता है।
नारियों के सच्चे मित्र थे श्रीकृष्ण
गोकुल और वृंदावन में श्रीकृष्ण गोप गोपियों के मध्य बहुत ही लोकप्रिय थे, खासतौर पर गोकुल और वृंदावन की युवा लड़कियां अथवा गोपियां श्रीकृष्ण को अपना मित्र सखा या प्रेमी मानती थी, भगवान श्रीकृष्ण जी इनके गौरव सम्मान पर कभी आंच नहीं आने देते थे जब दु:शासन द्वारा भरी सभा में द्रोपदी का चीर हरण किया जा रहा था तब एक सच्चे मित्र के रूप में भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी के चरित्र की रक्षा की थी इसी प्रकार जब पांडवों का वनवास काल चल रहा था तब ऋषि दुर्वासा के अचानक भोजन के लिए आ जाने से द्रौपदी बहुत ही विचलित हो जाती है, उसने सच्चे मन से अपने सखा श्रीकृष्ण को याद किया और श्रीकृष्ण ने दुर्वासा सहित समस्त ऋषि मुनियों को भरपेट भोजन कराकर अपनी सच्ची मित्रता का परिचय दिया था।
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