जब त्रेतायुग में सोए हुए मुचकुंद ऋषि को द्वापरयुग में श्रीकृष्ण ने जगवा दिया : डॉक्टर सुखबीर यादव

 जब त्रेतायुग में सोए हुए मुचकुंद ऋषि को द्वापरयुग में श्रीकृष्ण ने जगवा दिया : डॉक्टर सुखबीर यादव




भक्तों को कालयवन की कथा सुनाते हुए संस्कृत विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर सुखबीर यादव कहते हैं कि इस कथा का उल्लेख विष्णुपुराण व श्रीमद्भागवत के दसवें स्कंध के पंचम अंश 23वें व 51 वें अध्याय में मिलता है। ऋषि मुचकुंद श्री राम के पूर्वज थे। त्रेतायुग में इच्क्षवाकु वंशी महाराजा मान्धाता के तीन पुत्र हुए, अमरीष, पुरू और मुचकुन्द। युद्ध नीति में निपुण होने से देवासुर संग्राम में इंद्र ने महाराज मुचकुन्द को अपना सेनापति बनाया। युद्ध में विजय प्राप्त होने के पश्चात राजा मुचकुन्द ने इंद्र से अपने घर परिवार के पास लौटने की इच्छा व्यक्त की, जिस पर इंद्र ने उन्हें पृथ्वी पर जाने से मना कर दिया, कारण पूछने पर इंद्र ने बताया कि आप इंद्रलोक में एक वर्ष से निवास कर रहे हैं, स्वर्ग लोक का एक वर्ष पृथ्वी लोक में एक युग के समान है, अतः आपके परिवार के सभी सदस्यों की मृत्यु हो चुकी है जिससे कि राजा मुचकुन्द बहुत ही दुखी हो जाते हैं। इंद्र राजा मुचकुन्द से प्रसन्न होकर उन्हें मुक्ति के अतिरिक्त कोई भी वरदान देना चाहता है जिस पर राजा मुचकुन्द इंद्र से वरदान स्वरुप निद्रा को मांगते हैं, तब इंद्र कहते है कि जो कोई भी तुम्हारी निद्रा में बाधा डालेगा वह तुम्हारे आंख खुलते ही भस्म हो जाएगा। इसके पश्चात राजा मुचकुंद धौलपुर राजस्थान में स्थित गुफाओं में जाकर सो जाते हैं। भक्तों को आगे की कथा सुनाते हुए डॉक्टर सुखबीर यादव कहते हैं द्वापर युग में जब जरासंध ने श्रीकृष्ण से बदला लेने के लिए मथुरा पर 18वीं बार चढ़ाई की तो कालयवन भी युद्ध में जरासंध का सहयोगी बनकर आया। कालयवन महर्षि गार्ग्य का पुत्र व म्लेक्ष्छ देश का राजा था। वह कंस का भी परम मित्र था।भगवान शिव से उसे युद्ध में अजेय का वरदान भी मिला था। भगवान शिव के वरदान को पूरा करने के लिए भगवान कृष्ण रण क्षेत्र छोड़कर भागे। तभी से श्रीकृष्ण को रणछोड़ भी कहा जाता है। कृष्ण को भागता देख कालयवन ने उनका पीछा किया। मथुरा से लगभग 120 किमी दूर तक आकर श्यामाश्‍चल पर्वत की गुफा में आ गये जहाँ मुचकुन्द महाराज सो रहे थे। कृष्ण ने अपनी पीताम्बरी मुचकुन्द के ऊपर डाल दी और खुद एक चट्टान के पीछे छिप गये। कालयवन भी पीछा करते करते उसी गुफा में आ गया।अहंकार में भरे कालयवन ने त्रेतायुग से सो रहे मुचकुन्द महाराज को कृष्ण समझकर ललकारा। मुचकुन्द जी जागे और उनकी नेत्र की ज्वाला से कालयवन वहीं भस्म हो गया।तत्पश्चात् भगवान श्रीकृष्ण को अपने समक्ष देखकर जिज्ञासावश महाराज मुचकुन्द उनसे पूछते हैं कि यह कौन था जो मेरी दृष्टि से भस्म हो गया।भगवान कृष्ण ने मुचकुन्द को विष्णुरूप के दर्शन दिये। मुचकुन्द महाराज दर्शनों से अभिभूत होकर बोले हे भगवान! इस संसार चक्र में भ्रमण करते हुए मुझे कभी शांति नहीं मिली। देवलोक का बुलावा आया तो वहाँ भी देवताओं को मेरी सहायता की आवश्कता हुई। स्वर्ग लोक में भी शांति प्राप्त नहीं हुई। अब मैं आपका ही अभिलाषी हूँ , श्रीकृष्ण के आदेश से महाराज मुचकुन्द जी ने पाँच कुण्डीय यज्ञ किया। यज्ञ की पूर्णाहुति ऋषि पंचमी के दिन हुई। यज्ञ में सभी देवी दवताओं व तीर्थों को बुलाया गया। इसी दिन भगवान कृष्ण से आज्ञा लेकर महाराज मुचकुन्द गंधमादन पर्वत पर तपस्या के लिए प्रस्थान कर गये। वह यज्ञ स्थल आज पवित्र सरोवर के रूप में हमें इस पौराणिक कथा का बखान कर रहा है। सभी तीर्थो का नेह जुड़ जाने के कारण धौलपुर राजस्थान में स्थित तीर्थराज मुचकुन्द तीर्थों का भांजा भी कहा जाता है। हर वर्ष ऋषि पंचमी व बलदेव छठ को जहाँ लक्खी मेला लगता है। वहीं मेले में लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। माना जाता है कि यहाँ स्नान करने से चर्म रोग सम्बन्धी समस्त पीड़ाओं से छुटकारा मिलता है।

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